भारत मे बढती घटनाऐं

आये दिन अखबारो मे जब आतन्क वादियो कि कोइ काली करतुत पढता तो मन मे एक पिडा सी होती है. लोगो के प्रती सन्वेदना मन मे पैदा हो जाती है. आखिर दुनिया के सबसे बडे लोक्तान्त्रिक देश मे आखिर आतन्क का साया क्यो, क्या हम अपने लोगो का खुन बहते हुवे देख सकते है सच पु्छीये अगर समय रहते कोइ कदम नही उठा्या गया तो न जाने कितने और लोग आतन्कवाद कि बलि चढ जायेगे .कही ऐसा तो नही कि हम इसके आदि होते जा रहे हो, बतौर पहले मै यहि सोचता था कि सायद सरकार कुछ करे मगर क्या ये हमारा फर्ज नहि है कि हम भी इसमे सरकार का साथ दें, अभी हाल हि मे भारत मे आतन्की घटनायें बढी हैं हमारे देश कि राजधानी भी सुरक्षित नहि रही, तो आम जनता का क्या, दिल्ली मे २ घटनाये भि हो गयीं, ये घटनायें हमारे देश कि पुलिस और सुरक्षा ऐजेंसियां कि नाकामी ही तो दर्साता है. उपरोक्त वि्षय सायद मेरे दिमाग मे इस लिये आया क्योकि पहले मुम्बई, लखनऊ,वाराणसी और भी ना जाने कितनी घटनाये विश्व मे रोज हो रही हैं. आतंकियों का ना तो कोइ मजहब होता है और ना हि कोइ धर्म, सिर्फ एक हि मकसद होता है उनका मानवता को खतरा पहुचना.विश्व पटल पर भी चर्चायें बहुत हो रहि है मेरे ख्याल से हमे पुरे विश्व के साथ मिलकर एक "टास्क फोर्स" बनाने कि जरुरत भी है. कुछ दिन पहले कछ अखबारो मे ये खबर छपी थी कि पाकिस्तान भारत मे अशांती फैलाने कि लिये बडी संख्या मे आतंकियो को भेजने कि तैयारी कर रहा है. अब भी पाकिस्तान अधिक्रित "पि ओ के" मे कई आतंकियो का प्रशिक्षण केन्द्र चल रहा है. भारत मे जब भी कोई बडी घटना होती है तो हमारे नेता एक दुसरे के उपर आरोप लगाते हैं. और एक दुसरे कि सरकार कि नाकामिया बताने सि भि नहि चुकते, सायद इस लिये कि इस से अछछा कोई और न मिले, मगर ये वक्त आरोप-प्रत्यारोप का नहि है. आतंकवाद को मिटाने के लिये हमे एक दुसरे के साथ मिलकर काम करना होगा. और दलगत राजनिती से उपर उठकर मुकाबला करने का है.

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